घर हूँ इसलिए है उसके लौट आने की उम्मीद
दूर होकर भी वही फिर पास आने की उम्मीद
सब खोकर भी खड़ा है कोई पेड़ गर हू-ब-हू
होगी ही फिर नए पते पनप आने की उम्मीद
परिंदे को है तिनके की, जिस शिद्दत से तलाश
उसको भी तो होगी फिर आशियाने की उम्मीद
एक आवाज़, जो जंगलों को चीरकर आती रही
बेबसी में भी मौजूद थी जीत जाने की उम्मीद
उसके टूटने से ये जो टूट गए हैं लोग सब