एक चेहरे पर हजार चेहरे
चलते सड़कों पर
चौराहों पर
अख़बार में
हर जगह
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ
मुस्कराते चेहरे पर बयां करती आँखें
हर हादसा
हर चोट
हर निशान
सब कुछ
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ
भीड़ में नजर आता वो अकेला शख़्स
हर महफ़िल में
सभाओं में
गाड़ियों में
हर जगह
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ
एक खुशहाल परिवार पर समझौते
पति-पत्नी के बीच
पिता-पुत्र के बीच
भाई-भाई के बीच
एक दूसरे से
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ
एक चमकता घर, आलीशान गाड़ियां
पर वो अँधेरा कमरा
बदसलूकी
जुल्म
अमानवीयता
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ
मासूमियत, सादगी, खिलखिलाहट
पर वो इरादे
नफरत
ख़ामोशी
खंजर
और मैं सोचता हूँ कि मैं सच देखता हूँ