स्याह रात को रोशन करता हुआ जुगनू कोई
हो बारिश की बुँदे या हिना की खुशबू कोई
मशरूफ़ हैं सभी ज़िन्दगी के सफर में ऐसे
कि होता नहीं अब किसी से रूबरू कोई
सब्र-ए-इंतज़ार का एक हश्र यह भी तो है
बचती नहीं किसी भी तरह की आरजू कोई
है गर खामोश लबों से सुन सकने का हुनर
फिर आखिर क्यों किसी से करे गुफ़्तगू कोई
टूटे हुए साज से ये नगमा जो सुना रहा हूँ मैं
किसी के पाँव से निकल पड़ा है घुँघरू कोई