Sunday 25 September 2016

कल्पना


तुम हकीकत नहीं हो, पता है मुझे 
पर हर बार मैं तुमसे मिलता रहा हूँ 
तुम्हारी तस्वीर, मेरा तस्स्वुर 
बस यूँ ही कुछ ख्वाब बुनता रहा हूँ 

मैं खुद से अलग खो गया हूँ कहीं 
इस कदर हर बार तुमको ढूंढता रहा हूँ
लड़खड़ाना, गिरना, उठना और चलना 
जिंदगी, बहुत कुछ सीखता रहा हूँ 

कभी खुद जान नहीं पाया तुम्हे सलीके से
हालाँकि कई दफ़ा वही से गुजरता रहा हूँ 
एक हुनर है महफूज़ वर्षो से 
थोड़ा जीता रहा हूँ थोड़ा मरता रहा हूँ

सारा इल्ज़ाम मढ़ दिया है ज़माने ने सर मेरे
जबकि इस जुर्म में मैं सिर्फ हमसफ़र रहा हूँ 
यूँ आग में जलने का शौक किसे है
हँसी होंठो पर और आहिस्ता सिसकता रहा हूँ    


Monday 5 September 2016

अदला बदली भूमिकाओं की

अदला बदली भूमिकाओं की(एक प्राइमरी शिक्षक का दर्द)


अब जाता बारिश का महीना है
धूप में आती है कभी एक बौछार
और सो जाती हैं बूँदे सड़क की गर्दिश में
लगता है किसानो के चेहरे पर जैसे गिरा दी गई हो गर्म कोलतार




समय भी कुछ खुश्क है
धूप का छाता लगाये हुए और हवा के पंखे से
मैं भी जाता हूँ गिनती गिनाने अपनी बिना मोटर वाली साईकिल से

उस जगह पर जो हैं मेरे काम की जगह
है असल में एक कान्वेंट विद्यालय वह
रास्ते में एक दूर्गा मंदिर है जहाँ जमावड़ा रहता है लोगो का किसी फ़िराक में
पूजा करने के लिए किसी को आबाद या बर्बाद करने की ताक में

यही वह समय है जब नीम की छाह में गप्पे लड़ाना कर्त्तव्य समझा जाता है
और इस जर्जर मंदिर को विचारों की जर्जरता से ढकने का प्रयास किया जाता है
आगे पहुँचकर मैं पाता हूँ एक बाजार जो खासकर नशे का अड्डा है
फिर उतरता हूँ मैं अपनी साईकिल से,क्योंकि पास ही में एक गड्ढा है

है वह कुछ दुकानें चाय की ,पान की भी हो जाती है पूरी जरूरते खासमखास
पर जमावड़ा रहता है उन चार-पाँच दुकानों पर जहाँ बोतले बिकती हैं जनाब
फिर मिलता हूँ मैं अपने छात्रों से
जो हमारी आँखों को गर्द से ढकने के लिए प्रणाम करते हैं
जिन्हे कुछ मतलब नहीं होता ज्ञान की बातों से

ये छात्र बस छात्र रहना चाहते हैं
और धोखे को अपनी कुशलता का दर्प मानते हैं

अब सह शिक्षकों से होता है नमस्ते सलाम
कनिष्ठ वरिष्ठ में रहती है औपचारिकता मात्र
और पेड़ की छाह में मैं बुलाता हूँ नौनिहालों को
जो ले आ धमकते हैं कहानी की किताब

पढाई नहीं फरमाइश होती हैं जैसे शिक्षक कोई कलाकार हो
माननी होती है हर बात उनकी जैसे आप दूकानदार हों
और वह ठेले वाला भी काम कहाँ
जिसे लंच के वक्त का रहता है इंतजार
छात्रों पर बगुलें की तरह निशान लगायें चिल्लाता जाता है बार-बार
इसी आशा में हमारी फरमाइश भी है करता पूरी
यह जानते हुए भी की चवन्नी नहीं मिलने वाली

मैं स्वयं को खोजने की कोशिश करता हूँ
क्या मैं अपना वजूद व् वसूल खो चूका हूँ?
क्या मैं जो हूँ ,इसी लायक हूँ
या मुझे और भी बहुत कुछ करना है
जो जिस काम के लिए बना है
वो वही काम क्यों नहीं करता है?

हमने कर ली है अपनी भावनाओं से हेराफेरी
या हो गई है अदला बदली समय के साथ भूमिकाओं की

Monday 22 August 2016

कुछ शिकायते, कुछ नाराजगी, थोड़ी हसरते भी

माना दरम्यान कुछ गीले हैं, कुछ शिकवे भी
कुछ मजबूरियाँ मेरी, कुछ तेरी दिक्कतें भी 
कुछ शिकायते, कुछ नाराजगी, थोड़ी हसरते भी 
कुछ वादें, कुछ कसमें, थोड़ी मुहब्बतें भी 


पर पता है तुझे पास अब भी है मेरे ढेर सारी यादें तेरी 

कुछ बिताये पल, कुछ खुशियाँ और ढेर सारी बातें तेरी
वो मुस्कराहट, थोड़ा गुस्सा और वो मासूम आँखे तेरी 
मेरा मिलना तुझसे हर बार और वो बेचैन सांसें मेरी 


एक शाम, कुछ ख्वाब और अनगिनत कहानियाँ

सुनसान धड़कन, बेचैन रूह और हजारों निशानियाँ
मेरी आरजू, तेरे चेहरे और वक्त की बेईमानियां
बेताब दिल, सूनी आँखें और भींगी सी तनहाइयाँ


अजब सा रिश्ता है ये अजब सा फ़साना है 

कुछ अनसुलझे सवाल, मीलों का सफर और चलते जाना है 
जुस्तजू मेरी, गुजारिश मेरी पर जवाब तुझसे आना है 
हसीं मंजर, घने बादल और आशियाँ तुझे बनाना है 


Sunday 17 July 2016

कुछ कहना है तुमसे

कुछ कहना है तुमसे
सुन सकोगे, शायद नहीं
फिर भी कहना चाहता हूँ
एक आखिरी कोशिश

सुन न पाओ तो इशारा करना बस
चला जाऊंगा मैं वापस मुड़कर
संवेदनाओं को वापस दफ़न कर वहीं
जहाँ पड़ी हुई थी वर्षो से गुमसुम

तुम कहते न थे बहुत बोलते हो तुम
अब खामोश रहना सिख लिया है मैंने
पर पता नहीं क्यों आज जी मैं आया कि
कह दूँ वो सारी चीजें जो वर्षो से कहना चाहता था

न कह पाया तो भी अफ़सोस नहीं होगा
चलो एक बार हिम्मत तो की थी कहने की
आज शब्दों को बिना चुने ही बोलूँगा
जो भी है कहने को, बस बेधड़क

न सुनो तो भी भरोसा दिलाना सुनने का
इतना काफी होगा मेरे लिए, जी हल्का हो जायेगा

कहाँ से शुरू करू, बहुत सारी बाते हो गयी है कहने को
याद है तुम्हे जब पहली बार मिले थे हम, या फिर आखिरी

आखिरी भी नहीं, अरे जब कहा था तुमने कि
वापस जाने के बाद भूल तो नहीं जाओगे मुझे
अच्छा छोड़ो याद है वो दिन जब हम
घर वापस आ रहे थे साथ में और बारिश शुरू हो गयी थी
घंटों बातें की थी हमने पेड़ के नीचे छिपकर
नहीं, अच्छा ये तो याद होगा, जब बैठे रहे थे छत पर पूरी रात 
कैसे हमने एक दूसरे को अपने सपने बताये थे
हमें क्या बनना है, क्या करना है सब कुछ

कितनी जल्दी भूल जाते हो न सारी चीजें
बचपन से लेकर अभी तक वैसे के वैसे हो
मैं ही बदल गया हूँ शायद, चीजों के साथ यादें
सहेजना भी शुरू कर दिया था मैंने जाने के बाद

वैसे ही रहना जैसे मिले थे हम पहली बार
फिर कभी मुलाकात हो गर किसी मोड़ पर
चलों वापस दफ़न करता हूँ सारी संवेदनाओं को
यादों की चादर के साथ फिर उसी जगह पर

किसी को भी किसी के जिंदगी में अचानक यूँ दखल देना का हक़ नहीं होना चाहिए
तुम अच्छे हो, खुश हो, अच्छा लगा जान कर
चलता हूँ वापस जहाँ से आया था बेपनाह उम्मीदों के साथ
बड़ी लंबी जिंदगी है, बेशुमार समय भी, सुना है समय सबसे अच्छी दवा है किसी भी मर्ज की

जब उससे दूर जाता हूँ

वो शाम, जो हर शाम के बाद आती है
तमाम कोशिशों के बाद भी उदास आती है
फिर चांदनी को ओढ़े हुए रात आती है
जैसे मुद्दतों के बाद उसकी याद आती है

उस याद की परतों से मैं तकिया बनाता हूँ
चाँद लफ्ज उसकी तारीफों के गुनगुनाता हूँ
बिना मर्जी के उसके रिश्ते मैं ढूंढ लाता हूँ
कुछ ऐसे गुजरती है रात जब उससे दूर जाता हूँ

Saturday 2 January 2016

उम्मीद


ये जो तूने अपने चेहरे को नए चेहरे से छिपा रखा है
अब तू ही बता यहाँ,भरोसा टूटने के सिवा क्या रखा है ?
माना जालिम है दुनिया,और ये नया चेहरा भी जरूरी है
गम तो ये है कि मेरे सिवा हर शख्स को हमदर्द बना रखा है
मुमकिन है कि कुछ मजबूरियाँ रही होंगी उन दिनों
पर ऐसा भी तो नहीं कि तूने वाकया वर्षो से बता रखा है

आँखों का भींग जाना ज्यादा अच्छा है, खामोस होने से
क्या हुआ?क्यों जुबां पे इस कदर ताला लगा रखा है?

गरीब लोग हैं हम, मुस्कराहट के सिवा क्या देंगे
फिर भी इसी उम्मीद पर, आज की रात दरवाजा खुला रखा है||

Random#29

 स्याह रात को रोशन करता हुआ जुगनू कोई  हो बारिश की बुँदे या हिना की खुशबू कोई  मशरूफ़ हैं सभी ज़िन्दगी के सफर में ऐसे  कि होता नहीं अब किसी से...