Thursday 23 February 2017

आरजूओं का फलसफां, मैं कैसे तुम्हें बता दूँ 
बरसों की ये चाहत, मैं कैसे तुझसे जता दूँ 
मासूमियत, वो सादगी, वो खिलखिलाहट हर बात पर
जो गूंजती हों हर पहर, मैं कैसे इन्हें भुला दूँ

बन गयी हो जो जरूरत हर वक्त, बेवक्त की 
ऐसी हैं कुछ सिलवटें, मैं किस तरह मिटा दूँ 
दर्द की जो दास्तान, सुपुर्दें खाक हो चुकी 
उन दास्तानों का निशान, मैं कैसे तुम्हें दिखा दूँ 

अश्कों का ये सिलसिला, जो चल रहा है दर-बदर 
हर किसी के सामने, मैं कैसे इन्हें चुरा लूँ
सिसकियों की अर्जियां, खामोशियों का ये सफर 
फैली हुई जो दूर तक, मैं किस तरह छुपा लूँ 

Sunday 19 February 2017

चाहा मैंने भी वही हैं जो तुमने
माँगा मैंने भी वही है जो तुमने 
ग़लतफ़हमियाँ रह गयी दरम्यां शायद 
मंजूर हो जिंदगी को कुछ नया शायद 

Random#29

 स्याह रात को रोशन करता हुआ जुगनू कोई  हो बारिश की बुँदे या हिना की खुशबू कोई  मशरूफ़ हैं सभी ज़िन्दगी के सफर में ऐसे  कि होता नहीं अब किसी से...