Wednesday 21 October 2015

बिहार चुनाव

आज सर्द हवाओं का असर कुछ ज्यादा लगता है
हलचल मेरे गावं में,शहर से कुछ ज्यादा लगता है

दूध से सफ़ेद कपड़ें,सर पर टोपियां और हाथों में झण्डें
हुजूर साइकिलें कम और मोटर कार कुछ ज्यादा लगता है

गर्म चादर,कुछ पैसे और दो चार बोतलें दे गया है हाथों में जनाब
आज ठण्ड कुछ कम लगेगी,मुझे तो वो मददगार ज्यादा लगता है

चर्चे हैं हर तरफ अर्जियां मेरी भी सुनी जाएँगी अब बस्ती में
बेटा मेरा शिक्षक कम और हुजूर का खिदमतगार ज्यादा लगता है




Thursday 28 May 2015

नई शुरुआत

आंसू गिराये होंगे कई आँखों से हमने
पर हमारा ये इरादा कतई नहीं था
चलो मान लिया सारा कसूर था मेरा
पर मैं दोस्त था तुम्हारा,मुद्दई नहीं था

कि तुम हर बात को बखूबी समझ जाते हो
सोचता हूँ अब कि वो भरम था मेरा
इतने एहसान है कि आँखे नहीं मिलती तुमसे
वरना इन आँखों में तुम भी तो अश्क़ लाते हो

चलो एक नए रिश्ते कि शुरुआत करते हैं
चलते है दो कदम साथ में और चार बात करते हैं
मुमकिन है कि फ़ासले दरम्यान कुछ कम हो जाएँ
तुम और मैं मिलकर सायद हम हों जाएँ  

Tuesday 5 May 2015

चंद लफ़्ज

"दर्द की हद थी शायद वो,कि
एक झटके में सारा डर जाता रहा
वो मेरी जान लेकर जाते रहे
और मैं यूँ ही खड़ा मुस्कराता रहा"

"मुझपे मेरा गाँव छोड़ आने का इल्जाम न दो
मैं अब भी सपने में मिट्टी के महल बनाता हूँ
कभी आंसू ,कभी मुस्कान ,कभी वो किये हुए वादे
खोकर सपने में कहीं,मैं हकीकत भूल जाता हूँ"

"रिश्ते भी महँगे हो गए हैं,बाजार में कीमत की तरह
टूटने का डर बना रहता है हर वक्त , मिट्टी के दीपक की तरह
फ़ासले बढ़ गए हैं दिलों के दरम्यान कुछ इस कदर
जैसे हम सुलग रहे हों, और हर कोई मौजूद है मगर पावक की तरह"


"मैं कैसे ये कह दूँ तुम्हारी चाहत नही है
मुझे उस खुदI की इजाजत नही है
डांट दो बस एक बार यही समझकर
मैं बच्चा हूँ अब भी, सरारत नई है"

"खोकर रोज नींद अपनी तुम्हे चैन से सोने दिया
पोंछे हर आँशु गिरने से पहले,कभी रोने न दिया
और तुमने उनके प्यार का क्या खूब सिला दिया
अपने दोस्तों से तूने,उन्हें घर का नौकर बता दिया"

"चाँद की भी कभी ऐसी हालत हो जाती है
अमावस हो तो चाँदनी चली जाती है
सियासत का भी खेल कुछ ऐसा ही है दोस्तों
हद गुजर जाये तो बगावत चली आती है"

"झोपड़ियां खाली करो,महल बनानी है;उनका फ़रमान आया है "
हम तो चार पैसे न दे पर फिर भी चलो;दरम्यान ईमान आया है" 
इस बदहाली में भी हँस पड़ता हूँ उनके इस ""गंभीर"" रवैये पर 
फिर सर झुकाता हूँ सोचकर, चलो भगवान न सही शैतान आया है"

Monday 16 March 2015

रिश्ता


होठ सुर्ख थे जेठ की दोपहर की दीवार की तरह
अश्कों से बारिश भी जिसे भींगा नहीं पाया
चीख निकली थी पर गले तक अटकी 
इन फैले हाथों को थामने कोई हाथ नहीं अाया
मैं खड़ा रहा देर तक इंतजार में किसी के 
सब आये पर कोई पास नहीं आया 
कभी अच्छी लगते थे जीवन के हर एक पल
और आज पूरा दिन रास नहीं आया
मुझे कोई भी शोर जगा नहीं पाया
इतना गहरा डूबा की कोई बचा नहीं पाया 
हालाँकि उजाला हुआ था थोड़ी देर के लिए
पर ऐसा भी नहीं की रास्ता दिखा पाया
आज रिश्तों के सब मायने बदल गए,मेरे लिए 
जिसके आने की उम्मीद न थी,वो आया 
देखा था मैंने उसे शायद पहली बार,अनजान था वो
पर क्या उसने सच्चे रिश्ते का फर्ज नहीं निभाया?

Friday 6 March 2015

परिवर्तन


ये इतफ़ाक था कि होता हुआ हादसा टल गया
वरना सूरज पागल न था ,जो शाम से पहले ढल गया
उसने कसम खाई थी इंतजार की रात तक
रात जल्दी हुई और उसका दिल बदल गया 

उसने सोचा था कि शायद यह आखिरी दिन है 
उसने आग लगाई और पिछला पूरा किस्सा जल गया 
हालाँकि ये देखकर कदम लड़खड़ाये थे उसके
हाँ ये इतेफाक ही था कि वो फिर खुद ही संभल गया 

फिर कुछ न याद रहा उसे फ़साना अतीत का
एक जूनून बस आगे बढ़ने का,जीत का
जिसकी उम्मीद न थी किसी को वो कुछ ऐसा कर गया
ये इतफ़ाक था कि होता हुआ हादसा टल गया

Tuesday 3 March 2015

गुजारिश

गर है ख़ुदा तो फिर दिखाई क्यों नहीं देता ?
वो आवाज़ देता है मुझे सुनाई क्यों नहीं देता?
हलक तक साँस अटकी है,मुझे मौत आती है
गर वो दुश्मन है मेरा बधाई क्यों नहीं देता?
गला रुँधा है उसका भी,आँखे नम हैं उसकी भी
इन अंतिम लम्हों में वो विदाई क्यों नहीं देता
शायद कुछ गीले थे दरम्यां,कुछ बातें करनी थी
गर अहम नहीं हैं मुझमे,उसे बुला ही क्यों नहीं लेता ?
छोटी बात थी कितनी ,मुझे महसूस होता है
मेरी इन भावनाओं को बता ही क्यों नहीं देता?
शायद वो पास है मेरे,फासला क्यों है इतना फिर
दोनो की चाहतों को एक बना ही क्यों नहीं देता?
गुजरे हुए हर एक लम्हें याद आते हैं
मेरी परछाई की तरह ही मेरे साथ जाते हैं
कि मैं आँखें मूँद लेता हूँ,और सफर को जाता हूँ
तू दोस्त हैं मेरा दिखाई क्यों नहीं देता ?
माफ़ कर देना मुझे,वो जज्बात थे मेरे
हर पल मुझे उस बात का अफ़सोस रहता था
इतना भी न कर सका मैं कि कह सकूँ तुमसे
गर कर दिया हैं माफ़,जता ही क्यों नहीं देता?
इन अंतिम लम्हों में तुम्हे दो शब्द लिखता हूँ
तुम पढोगे मेरे लब्जों को मुझे पता नहीं
गर पढोगे लेकिन तो फिर गुजारिश है मेरी
उन बीती बातों को तू भुला ही क्यों नहीं देता?

Wednesday 25 February 2015

प्यार



जब राहें मंजिल से ज्यादा अच्छी लगें
जब कहानियाँ हकीकत से ज्यादा सच्ची लगें 
जब ख़्वाब कोरे सपनों की जगह ले लें 
जब बेपरवाह नींद बेचैनियों को जगह दे दे
जब हर दिन खुशनुमा और रातें प्यारी हों
जब हर पल जेहन में अजब सी बेकरारी हो
जब हर शख्श अपना लगे,हर बात प्यारी लगे 
जिंदगी बोझ न रहकर,खुशियों की सवारी लगे
जब किसी का हर अंदाज जैसे एक अदा लगे 
जब दूर रहना गँवारा न हो जैसे एक सजा लगे 
तो तुम इकरार करो न करो प्यार तो हुआ है
एक लाइलाज बीमारी जिसकी दवा,सिर्फ दुआ है

Thursday 29 January 2015

नया साल

दफनाकर काली रातों को
भूलाकर बीती बातो को
आँखों की नमी मिटा दो तुम
अहम का दर्प हटा दो तुम

नयी आशाओं के छाँव तले
नए सपनों का संसार बने
नई धूप में नयी किरण संग
नई अनुभूति का घर-बार बने

कटुता की सब खाई मिट जाये
हम मजहब का अर्थ समझ जाएँ
हर पल हर उदास चेहरा मुस्काएँ
हर घडी हर दिन नयी सौगाते लाये

मुरझायें आशाएँ हरी हो जाये
हर टूटी उम्मीद खड़ी हो जाये
जीवन की शून्यता मिटे ऐसे
जैसे हर बात अंताक्षरी हो जाये

वनिता का सिंदूर अमर हो
प्रेमभाव का स्वर मुखर हों
सुलझ जाये हर उलझी पहेली
नव वर्ष का कुछ ऐसा असर हो

हौसले भी हों और इरादें भी हों
कुछ खट्टी,कुछ मीठी यादें भी हों
वक्त गुजरने के साथ बस ऐसा न हों
कुछ टूटे हुए सपनो के धागे भी हों

Random#29

 स्याह रात को रोशन करता हुआ जुगनू कोई  हो बारिश की बुँदे या हिना की खुशबू कोई  मशरूफ़ हैं सभी ज़िन्दगी के सफर में ऐसे  कि होता नहीं अब किसी से...