Tuesday 3 March 2015

गुजारिश

गर है ख़ुदा तो फिर दिखाई क्यों नहीं देता ?
वो आवाज़ देता है मुझे सुनाई क्यों नहीं देता?
हलक तक साँस अटकी है,मुझे मौत आती है
गर वो दुश्मन है मेरा बधाई क्यों नहीं देता?
गला रुँधा है उसका भी,आँखे नम हैं उसकी भी
इन अंतिम लम्हों में वो विदाई क्यों नहीं देता
शायद कुछ गीले थे दरम्यां,कुछ बातें करनी थी
गर अहम नहीं हैं मुझमे,उसे बुला ही क्यों नहीं लेता ?
छोटी बात थी कितनी ,मुझे महसूस होता है
मेरी इन भावनाओं को बता ही क्यों नहीं देता?
शायद वो पास है मेरे,फासला क्यों है इतना फिर
दोनो की चाहतों को एक बना ही क्यों नहीं देता?
गुजरे हुए हर एक लम्हें याद आते हैं
मेरी परछाई की तरह ही मेरे साथ जाते हैं
कि मैं आँखें मूँद लेता हूँ,और सफर को जाता हूँ
तू दोस्त हैं मेरा दिखाई क्यों नहीं देता ?
माफ़ कर देना मुझे,वो जज्बात थे मेरे
हर पल मुझे उस बात का अफ़सोस रहता था
इतना भी न कर सका मैं कि कह सकूँ तुमसे
गर कर दिया हैं माफ़,जता ही क्यों नहीं देता?
इन अंतिम लम्हों में तुम्हे दो शब्द लिखता हूँ
तुम पढोगे मेरे लब्जों को मुझे पता नहीं
गर पढोगे लेकिन तो फिर गुजारिश है मेरी
उन बीती बातों को तू भुला ही क्यों नहीं देता?

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