दीवाली दीप के दिव्यार्थ का त्योंहार है
अब तो शक होता है मुझे
देखकर घोर कालिमा राजू के घर में और उसकी आँखों में वेदना
दुःख होता है मुझे
राजू मेरे गावँ का ही एक भोला भाला लड़का है
जिसे दीवाली भी बाक़ी दिनों की तरह ही नजर आती है
ऐसा नहीं की उसे आतिशबाजी का शौक नहीं
और उसे उजियारे की यह स्वर्ण लालिमा रास नहीं आती है
पर वह बेबस है मजबूर है लाचार है
उम्र में छोटा है मगर सबसे समझदार है
आज दीवाली है पर उसके घर में आज भी अँधेरा है
कोई शोर शराबा नहीं लगता है जैसे भूतों का डेरा है
दीवाली उजालों का त्योंहार है पर सबके लिए नहीं
कैसी दीवाली और कहाँ का त्योंहार जब आपके पास पटाखे नहीं और दियें नहीं
देखकर आँशु अपनी माँ की आँखों में
वह कोशिश करता है हसने की हँसाने की बातों ही बातों में
पकड़कर माँ की उंगलियां अपने नन्हे हाथों में
वह कहता है एक गंभीर बात इन चमकती रातों में
माँ तुम रोती क्यों हो दीवाली कल है मैंने पूछा था पंडित जी से
मैं कसम खाता हूँ मैं झूठ नहीं बोल रहा तुम पूछ लो बड़ी दीदी से
फिर वह अपने नन्हे हाथों से आपने माँ के आँशू पोछता है
दर्द में जगता है रात भर और अगले दिन दीवाली मनाने का एक नया तरीका खोजता है
सुबह होते ही वह दौड़ता है आलिशान मकानों के नीचे
कुछ गिरे हुए पटाखे मिल जाये शायद कुछ ऐसे ही सपनो को सींचे
वह खुश है कुछ पटाखे पाकर साथ मे कुछ अधजली मोमबत्तियां भी
अगले दिन वह भी मनाता है दीवाली रोशन होती है उसकी कुटियां भी
पर दीवाली तो कल थी यह उसे भी पता है मुझे भी पता है
दीवाली कल न मन सका वह पर इसमें उसकी क्या खता है
दीवाली तो तब है जब दिल से दिलों के दियें जल जाये
बुझ जाएँ अमीरी गरीबी के फासलों के दियें कमल प्यार के खिल जाएँ