आंसू गिराये होंगे कई आँखों से हमने
पर हमारा ये इरादा कतई नहीं था
चलो मान लिया सारा कसूर था मेरा
पर मैं दोस्त था तुम्हारा,मुद्दई नहीं था
कि तुम हर बात को बखूबी समझ जाते हो
सोचता हूँ अब कि वो भरम था मेरा
इतने एहसान है कि आँखे नहीं मिलती तुमसे
वरना इन आँखों में तुम भी तो अश्क़ लाते हो
चलो एक नए रिश्ते कि शुरुआत करते हैं
चलते है दो कदम साथ में और चार बात करते हैं
मुमकिन है कि फ़ासले दरम्यान कुछ कम हो जाएँ
तुम और मैं मिलकर सायद हम हों जाएँ
No comments:
Post a Comment