वो शाम, जो हर शाम के बाद आती है
तमाम कोशिशों के बाद भी उदास आती है
फिर चांदनी को ओढ़े हुए रात आती है
जैसे मुद्दतों के बाद उसकी याद आती है
उस याद की परतों से मैं तकिया बनाता हूँ
चाँद लफ्ज उसकी तारीफों के गुनगुनाता हूँ
बिना मर्जी के उसके रिश्ते मैं ढूंढ लाता हूँ
कुछ ऐसे गुजरती है रात जब उससे दूर जाता हूँ
No comments:
Post a Comment