उसकी बेबाक हँसी और तकती हुई आँखे मेरी
मायूस हो जाये तो फिर रुक जाये सांसे मेरी
बिखेर दे जुल्फें तो फिर शामो-सहर बहार चले
रौशन सी फिज़ा और सदा रौशन रही रातें मेरी
सुर्ख होठों की नज़ाकत से यूँ मदहोश शमा.....
उससे मिलने की तलब और बेचैन निगाहें मेरी
चूम ले जख्मों को तो फिर मरहम क्या है ?
उसकी नाज़ुक बाँहों को थामे हुई बाहें मेरी
उसकी तारीफ़ में लिखा हुआ हर हर्फ़ है पाकीज़ा
ग़ज़ल क्या है...उससे जुड़ी हुई सब यादें मेरी
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