ये सच है कि कुछ बचा नहीं है अब
सब तेरे जैसा है बस तू नहीं है अब
हर शाम सूरज डूबता है वैसी ही
चाँद जमीं पर उतरता नहीं है अब
घर बसने कहने को ही घर है
इस घर में कोई रहता नहीं है अब
रस्म है जो निभाई जा रही है यूँ ही
कोई आता है तो ठहरता नहीं है अब
कोई टूट कर इस कदर बिखरा है
किसी के लिए भी सवंरता नहीं है अब
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