ख़ुद को गुनाहगार ठहरा ख़ुद को तस्सली दे रहा हूँ
हर किसी के हिस्से का जुर्म मैं अपने सर ले रहा हूँ
ये किस तरह का ताल्लुक था किसी का मेरे साथ
उसने दूर जाने को कहा और मैं और पास हो रहा हूँ
मैं जानता था सब कुछ सौंप देने का अंज़ाम लेकिन
ये क्या है कि मैं हर हर्फ़ से एक ग़ज़ल पिरो रहा हूँ
यूँ नहीं है कि उसके जाने से टूट गया मैं
अब किसी का नहीं हो पाउँगा मैं इसलिए रो रहा हूँ
मैं हूँ तन्हाई है और यादों का ये बोझ
क्या बचा है मेरे पास किसके लिए संजो रहा हूँ
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