Tuesday 20 April 2021

Random#4

 ज़िन्दगी यूँ गुजर रही है


जैसे आइना फर्श पे बिखर रहा हो

लहूँ अश्क बनकर उतर रहा हो


परिंदा पिंजड़े में मचल रहा हो 

जंगल खुद अपनी आग में जल रहा हो 


बेवक्त मौसम बदल रहा हो 

कोई काटों पर जैसे चल रहा हो 


कोई गिर रहा हो और संभल रहा हो 

रात उजाले को निगल रहा हो 


रेत हाथों से फिसल रही हो 

बर्फ सर्दियों में पिघल रही हो 


ज़िन्दगी यूँ गुजर रही है 

जैसे वो ज़िन्दगी न होकर ग़ज़ल रही हो 

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