तुम्हारी बातें
जैसे जून के महीने में
खेतों में गिरी बारिश की बूँदे
और मैं
जैसे किसान के चेहरे
पर आयी मुस्कराहट
या फिर
दिसंबर के महीने में
सूरज ने धीमे
से जैसे हँस दिया हो
और मैं खिड़की को
खोल उस रोशनी
को पकड़ने की ताक में
देर तक ठहरा हुआ हूँ
जैसे जून के महीने में
खेतों में गिरी बारिश की बूँदे
और मैं
जैसे किसान के चेहरे
पर आयी मुस्कराहट
या फिर
दिसंबर के महीने में
सूरज ने धीमे
से जैसे हँस दिया हो
और मैं खिड़की को
खोल उस रोशनी
को पकड़ने की ताक में
देर तक ठहरा हुआ हूँ
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